दुनिया में दो तरह के लोग होते है ,एक ज्यादा खुश रहने वाले और एक हमेशा दुखी रहने वाले ! अब इनमे में कई प्रकार होते है जैसे कुछ लोग अपनी अच्छी सोच या हर पहलु को सकारात्मक तरीके से सोचते है इसलिए कभी परेशान या दुखी नहीं रहते।और कुछ मस्तमौला लोग होते है जो हर बात को हलके में लेते है अपने में ही मस्त रहते है जो हो रहा है या जो होगा उसकी परवाह ही नहीं करते मतलब की ज्यादा नहीं सोचते सब कुछ स्वीकार कर लेते है जो भी ज़िन्दगी से मिला।
और इनमे से भी एक अलग ही चिंगारी की तरह के होते है जो दिखती छोटी सी है पर चोट बड़ी कर देती है ,कहने का आशय ऐसे लोगो से है जो दुसरो को अंदर ही अंदर दुःख पहुंचा कर मतलब आहात कर के अपना काम हो जाये बाकि कोई मतलब नहीं किसी को क्या फर्क पड़ता है या कोई क्या सोचता है बस अपने में खुश रहते है। आज के समय में देखा जाये तो लोग ऐसे ही खुश नजर आते है। जो अंदर से कैसे भी हो बहार उनका कोई कुछ नहीं बता सकता। ...
चलो अब बात ऐसे प्राणियों की जो हर समय दुसरो का सोचते है और हर समय दुखी रहते है !!ऐसे लोगो पे हसी भी आती है और तरस भी। .. के आज के ऐसे ज़माने में वो ये उम्मीद करते है के सामने वाला कभी मुझसे खुश होगा!!! क्या ऐसा कभी सच में संभव है ? मेरा मानना तो है की ऐसा कत्तई संभव नहीं। क्यों के होता क्या है के हम अपने किसी प्रिय या अपने परिवारजन या समाज ,लोग,...जिनके बारे में हर बात पे सोचते है के कही उनको बुरा न लग जाये ,या बड़ा काम हो तो हम सोचते है लोग क्या कहेंगे। . हुआ क्या,
दोनों स्तिथि में अपना मन मारा !और किसी के कोई फर्क पड़ा ? नहीं, ये ही बात घर वालो पे भी कई बार लागु होती है जो औरते हर समय परिवार वालो या ससुराल वालो को अच्छा दिखने के चक्कर में पड़ी होती है उसे कभी कुछ हासिल नहीं होता रहती हर वक़्त दुखी ही है क्यों की इसका कारण होता है के उससे सब लोग उम्मीद लगा लेते है के ये जैसे हम चाहते है वैसा ही करेगी या जो हमारी ख़ुशी हो वो करेगी ,और जैसे ही उसने कभी गलती से भी अपनी ख़ुशी के लिए किसी और की किसी बात को नजरअंदाज भी कर दिया तो पिछले सारे पुण्य उसी दिन धुल जाते है !! पता नहीं मेरी बात से हो सकता लोग सहमत न हो। हाँ हो सकता है अपवाद मिले है उनको कोई !
ज्यादातर ऐसा ही होता है अपने जीवन में जो औरत या कोई भी ज्यादा सोचता है वो हमेशा वही रहता है कभी नहीं बदलती उसकी स्तिथि या उसका जीवन। क्यों के कहते है न वो एक ऐसी कोशिश में लगी रहती है जैसे "मेंढक को तराजू में तोलना ,एक को बिठाओ दूसरा कूद जाता है" ऐसे ही परिवारजन और वही लोग होते है जिनको हम सोचते रहते है के इनको बुरा न लग जाये और नाकाम कोशिश में लगे रहते है। .
इससे अच्छा तो ऊपर जिनके बारे में हमने बात की वैसे बन जाना बेहतर है के ज्यादा सोचो मत ,जो अच्छा लग रहा है जिससे किसी की हानि न हो ,वो कर लो। और खुश रहो बाकि सब की सोच तो हम बदल नहीं सकते एक एक की कौन क्या सोचेगा। इसलिए मेरा तो अनुभव यही कहता है के ज़िन्दगी में ज्यादा सोचना कही न कही गलत है क्यों के हम हर एक को खुश नहीं कर सकते हम एक माँ के पेट से जन्म लिया सगे भाई बहिन भी अलग अलग सोच के होते है ,तो दुसरो का सोच के उनको खुश रखने के गोल गोल घेरे में अपने आप को ख़त्म करते जाते है और जीवनपर्यन्त वही रहते है कुछ अच्छा बदलाव नहीं ला सकते जीवन में.
और इनमे से भी एक अलग ही चिंगारी की तरह के होते है जो दिखती छोटी सी है पर चोट बड़ी कर देती है ,कहने का आशय ऐसे लोगो से है जो दुसरो को अंदर ही अंदर दुःख पहुंचा कर मतलब आहात कर के अपना काम हो जाये बाकि कोई मतलब नहीं किसी को क्या फर्क पड़ता है या कोई क्या सोचता है बस अपने में खुश रहते है। आज के समय में देखा जाये तो लोग ऐसे ही खुश नजर आते है। जो अंदर से कैसे भी हो बहार उनका कोई कुछ नहीं बता सकता। ...
चलो अब बात ऐसे प्राणियों की जो हर समय दुसरो का सोचते है और हर समय दुखी रहते है !!ऐसे लोगो पे हसी भी आती है और तरस भी। .. के आज के ऐसे ज़माने में वो ये उम्मीद करते है के सामने वाला कभी मुझसे खुश होगा!!! क्या ऐसा कभी सच में संभव है ? मेरा मानना तो है की ऐसा कत्तई संभव नहीं। क्यों के होता क्या है के हम अपने किसी प्रिय या अपने परिवारजन या समाज ,लोग,...जिनके बारे में हर बात पे सोचते है के कही उनको बुरा न लग जाये ,या बड़ा काम हो तो हम सोचते है लोग क्या कहेंगे। . हुआ क्या,
दोनों स्तिथि में अपना मन मारा !और किसी के कोई फर्क पड़ा ? नहीं, ये ही बात घर वालो पे भी कई बार लागु होती है जो औरते हर समय परिवार वालो या ससुराल वालो को अच्छा दिखने के चक्कर में पड़ी होती है उसे कभी कुछ हासिल नहीं होता रहती हर वक़्त दुखी ही है क्यों की इसका कारण होता है के उससे सब लोग उम्मीद लगा लेते है के ये जैसे हम चाहते है वैसा ही करेगी या जो हमारी ख़ुशी हो वो करेगी ,और जैसे ही उसने कभी गलती से भी अपनी ख़ुशी के लिए किसी और की किसी बात को नजरअंदाज भी कर दिया तो पिछले सारे पुण्य उसी दिन धुल जाते है !! पता नहीं मेरी बात से हो सकता लोग सहमत न हो। हाँ हो सकता है अपवाद मिले है उनको कोई !
ज्यादातर ऐसा ही होता है अपने जीवन में जो औरत या कोई भी ज्यादा सोचता है वो हमेशा वही रहता है कभी नहीं बदलती उसकी स्तिथि या उसका जीवन। क्यों के कहते है न वो एक ऐसी कोशिश में लगी रहती है जैसे "मेंढक को तराजू में तोलना ,एक को बिठाओ दूसरा कूद जाता है" ऐसे ही परिवारजन और वही लोग होते है जिनको हम सोचते रहते है के इनको बुरा न लग जाये और नाकाम कोशिश में लगे रहते है। .
इससे अच्छा तो ऊपर जिनके बारे में हमने बात की वैसे बन जाना बेहतर है के ज्यादा सोचो मत ,जो अच्छा लग रहा है जिससे किसी की हानि न हो ,वो कर लो। और खुश रहो बाकि सब की सोच तो हम बदल नहीं सकते एक एक की कौन क्या सोचेगा। इसलिए मेरा तो अनुभव यही कहता है के ज़िन्दगी में ज्यादा सोचना कही न कही गलत है क्यों के हम हर एक को खुश नहीं कर सकते हम एक माँ के पेट से जन्म लिया सगे भाई बहिन भी अलग अलग सोच के होते है ,तो दुसरो का सोच के उनको खुश रखने के गोल गोल घेरे में अपने आप को ख़त्म करते जाते है और जीवनपर्यन्त वही रहते है कुछ अच्छा बदलाव नहीं ला सकते जीवन में.
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