माँ दुनिया का सबसे छोटा शब्द ,जिसमे सारी दुनिया समायी हुई होती है। शब्द छोटे से मतलब सिर्फ लेखनी से है पर हम सभी के जीवन में माँ ही ऐसा रिश्ता है जो बिना किसी स्वार्थ के हमसे प्यार करती है ,वो बदले में हमसे कुछ नहीं चाहती हाँ जीवन पर्यन्त भगवान से जरूर मांगती है हमारी खुशिया !...
सच में ये सारे अनुभव मुझे भी शादी के बाद समझ आये। पहले तो सिर्फ उनको परेशान करना ही अपना प्यार समझते थे। ऐसा लगता था मानो हम अपने अच्छी बेटी के कर्तव्य पूरे कर रहे है।
पर आज समय ने ऐसे मोड़ पे ला के खड़े कर दिया है के बच्चो को पालने में हर एक दिन या यूँ कहे के हर घडी माँ की बाते याद आती है के उन्होंने कितना सहन किया हमें पाल पोष के बड़ा करने में परिवार में सब अलग अलग तरह के प्राणी ,सब के स्वाभाव ऐसे की, जैसे अंगुली की नोक पर रखा हुआ बॉल। थोड़ा ऊंच नीच होते ही गिर न जाये ,इतना संभाल के रखना.!
माँ खुद बन गए पर आज भी अपनी माँ की ऐसे याद आती है जैसे कोई बच्चे को आती है। पर बस बच्चो की तरह रो के अपनी जिद पूरी नहीं करवा सकते। क्यों के अब तो हमारे ऊपर भी कई अधिकारी होते है जिनको अपनी माँ से मिलने के लिए पहले अनुमति पत्र पे हस्ताक्षर करवाने पड़ते है जिसमे साथ में कितने दिन की छुट्टियाँ मिली है वो भी होता है। ...
माँ से मिलने पर जितना सोचते है के मन हल्का करेंगे अपने दुःख सुख से ,पर उनसे मिलते ही दिमाग और दिल में इतना हल्का हो जाता है बिना कुछ कहे जैसे कुछ बोझ है ही नहीं दिल में जबकि उससे पहले जब परेशान होते है तब लगता है माँ से मिलते ही खुल के रोना आएगा। ...
माँ हमेशा अच्छी दोस्त के साथ साथ गलती होने पर बताने में भी देर नहीं लगाती ताकि उसकी बेटी को अपने ससुराल या समाज में कही सुंनना न पड़े !
आज जब बच्चे कुछ भी कह देते है तब बहुत ज्यादा दुःख होता है साथ में अपनी माँ के लिए भी होता है के उसने इतना हमें कभी नहीं बताया आज समझ आता है जब बच्चे मुँह पे कुछ भी बोल देते है , बेशक हम ऐसे भी नहीं बोलते थे ,पर ये सब भी समय के अनुसार बदल गए ,हम अपने समय में अलग तरह से परेशान करते होंगे जो आज के माहौल में हमें लगता है कुछ भी नहीं किया।
खेर ये सब तो अब आदत सी हो गयी है। .पर सबसे ज्यादा माँ की याद उस समय आती है जब वो इंसान हमें जाने अन्जाने में दुःख पहुंचता है जिसके भरोसे हमारी माँ निश्चिन्त हो के रहती है और अपने कलेजे का टुकड़ा सौंप देती है। तब तो ऐसे लगता है जैसे दुनिया में कोई नहीं है हमारा , माँ की कमी लगती है के उससे कहु तो दुःख होगा और न कहु तो मेरा जीना मरना सामान हो जाता है ,...!
फिर ऐसे लगता है जैसे हमारा अस्तित्व सिर्फ सबकी इच्छा पूरी करना ही रह गया है सो काम कर के एक गलती पर लोग इतना सुनाते है तब एहसास होता है के सच में इस दुनिया में सिर्फ और सिर्फ एक माँ ही है जो हमसे निस्वार्थ प्रेम करती है !बाकि सब मतलबी है। ये बात हर किसी को अपने जीवन में जरूर महसूस होती है कभी न कभी ,,,,,,
सच में ये सारे अनुभव मुझे भी शादी के बाद समझ आये। पहले तो सिर्फ उनको परेशान करना ही अपना प्यार समझते थे। ऐसा लगता था मानो हम अपने अच्छी बेटी के कर्तव्य पूरे कर रहे है।
पर आज समय ने ऐसे मोड़ पे ला के खड़े कर दिया है के बच्चो को पालने में हर एक दिन या यूँ कहे के हर घडी माँ की बाते याद आती है के उन्होंने कितना सहन किया हमें पाल पोष के बड़ा करने में परिवार में सब अलग अलग तरह के प्राणी ,सब के स्वाभाव ऐसे की, जैसे अंगुली की नोक पर रखा हुआ बॉल। थोड़ा ऊंच नीच होते ही गिर न जाये ,इतना संभाल के रखना.!
माँ खुद बन गए पर आज भी अपनी माँ की ऐसे याद आती है जैसे कोई बच्चे को आती है। पर बस बच्चो की तरह रो के अपनी जिद पूरी नहीं करवा सकते। क्यों के अब तो हमारे ऊपर भी कई अधिकारी होते है जिनको अपनी माँ से मिलने के लिए पहले अनुमति पत्र पे हस्ताक्षर करवाने पड़ते है जिसमे साथ में कितने दिन की छुट्टियाँ मिली है वो भी होता है। ...
माँ से मिलने पर जितना सोचते है के मन हल्का करेंगे अपने दुःख सुख से ,पर उनसे मिलते ही दिमाग और दिल में इतना हल्का हो जाता है बिना कुछ कहे जैसे कुछ बोझ है ही नहीं दिल में जबकि उससे पहले जब परेशान होते है तब लगता है माँ से मिलते ही खुल के रोना आएगा। ...
माँ हमेशा अच्छी दोस्त के साथ साथ गलती होने पर बताने में भी देर नहीं लगाती ताकि उसकी बेटी को अपने ससुराल या समाज में कही सुंनना न पड़े !
आज जब बच्चे कुछ भी कह देते है तब बहुत ज्यादा दुःख होता है साथ में अपनी माँ के लिए भी होता है के उसने इतना हमें कभी नहीं बताया आज समझ आता है जब बच्चे मुँह पे कुछ भी बोल देते है , बेशक हम ऐसे भी नहीं बोलते थे ,पर ये सब भी समय के अनुसार बदल गए ,हम अपने समय में अलग तरह से परेशान करते होंगे जो आज के माहौल में हमें लगता है कुछ भी नहीं किया।
खेर ये सब तो अब आदत सी हो गयी है। .पर सबसे ज्यादा माँ की याद उस समय आती है जब वो इंसान हमें जाने अन्जाने में दुःख पहुंचता है जिसके भरोसे हमारी माँ निश्चिन्त हो के रहती है और अपने कलेजे का टुकड़ा सौंप देती है। तब तो ऐसे लगता है जैसे दुनिया में कोई नहीं है हमारा , माँ की कमी लगती है के उससे कहु तो दुःख होगा और न कहु तो मेरा जीना मरना सामान हो जाता है ,...!
फिर ऐसे लगता है जैसे हमारा अस्तित्व सिर्फ सबकी इच्छा पूरी करना ही रह गया है सो काम कर के एक गलती पर लोग इतना सुनाते है तब एहसास होता है के सच में इस दुनिया में सिर्फ और सिर्फ एक माँ ही है जो हमसे निस्वार्थ प्रेम करती है !बाकि सब मतलबी है। ये बात हर किसी को अपने जीवन में जरूर महसूस होती है कभी न कभी ,,,,,,
Comments
Post a Comment